Shanivar Vrat Katha शनिवार व्रत कथा - Shanidev Kahani | Lyrics

Shanivar Vrat Katha शनिवार व्रत कथा - Shanidev Kahani | Lyrics

Shanivar Vrat Katha शनिवार व्रत कथा - Shanidev Kahani: Hi friends I'm sharing Shanivar vrat katha with video. यह पर आप सब लोग समय के लिए शनिवार व्रत कथा सुन सकते हैं। याहा प्रति 5 मिनट की भी कथा है या 20 मिनट की भी कथा है। आप के समय के अनुसार आप को जो सही लगे वो वीडियो प्ले करे या शनिवार व्रत कथा सुने। और आप चाहे तो शनिवार व्रत कथा को पढ़ भी सकते हो, मै यहाँ पर शनिवार व्रत कथा का वीडियो और लिखित दोनों में उपलब्ध करवा रहा है। उम्मीद करता हु की शनिवार व्रत कथा की ये पोस्ट आप को पसंद आएगी। 


शनिवार व्रत कथा और पूजा विधि
शनिवार व्रत पूजा विधि
शनिदोष से मुक्ति पाने के लिये मूल नक्षत्र युक्त शनिवार से आरंभ करके सात शनिवार शनिदेव की पूजा करनी चाहिये और व्रत रखने चाहिये। ऐसा करने से शनिदेव की कृपा बनी रहती है। व्रत के लिये शनिवाह को प्रात:काल उठकर स्नान करना चाहिये और तत्पश्चात भगवान हनुमान व शनिदेव की आराधना करते हुए तिल व लौंग युक्त जल पीपल के पेड़ पर चढ़ाना चाहिये। इसके बाद शनिदेव की प्रतिमा के समीप बैठकर उनका ध्यान लगाते हुए मंत्रोच्चारण करना चाहिये। पूजा करने के बाद काले वस्त्र, काली वस्तुएं किसी गरीब को दान करनी चाहिये। अंतिम व्रत को शनिदेव की पूजा के साथ-साथ हवन भी करवाना चाहिये।


शनिवार की व्रत कथा
बात बहुत समय पहले की है जब देवी-देवता, ऋषि-मुनि आदि स्वर्ग लोक से लेकर भू लोक तक विचरण कर सकते थे। उस समय एक बार क्या होता है कि स्वर्गलोक में वास कर रहे हो नव ग्रहों में इस बात को लेकर विवाद छिड़ गया कि सबसे बड़ा, सबसे शक्तिशाली ग्रह कौन है। विवाद ज्यादा बढ़ गया और नव ग्रहों के आपसी विवाद से जन जीवन प्रभावित होने लगा। ऐसे में सब अपनी शंका का समाधान करने के लिये देवराज इंद्र के दरबार में जा पंहुचे। अब उनकी समस्या को सुनकर खुद इंद्र भी हैरान रह गये कि अब जवाब दें तो क्या दें। उन्होंने कहा कि भू लोक में राजा विक्रमादित्य बहुत ही सुलझे हुए राजा हैं वे तुम्हारी इस शंका का समाधान कर सकते हैं। सभी ग्रह राजा विक्रमादित्य के दरबार में हाजिर हो गये। अब विक्रमादित्य भी एक बार तो हैरान हुए कि क्या जवाब दे किसी को भी छोटा बड़ा बताने पर वह नाराज़ हो सकते हैं और उनकी नाराजगी का तात्पर्य होगा राजा व प्रजा की तकलीफें बढ़ना। उन्हें एक युक्ति सूझी और सोने चांदी से लेकर लोहे तक सभी देवताओं के लिये अलग अलग धातु के सिंहासन उन्होंने बनवाये और कहा कि जिसका जो भी आसन है धारण करें जिसका सिंहासन सबसे पहले है, सोने का है वह सबसे बड़ा जिसका सबसे पिछे है वह सबसे छोटा। अब लोहे का सिंहासन सबसे पिछे था जो कि शनिदेव के लिये था। बाकि देवता विक्रमादित्य के इस फैसले से खुश हुए लेकिन शनिदेव उनसे नाराज़ हो गये और विक्रमादित्य को कहा कि तुम्हें पता नहीं है मैं क्या कर सकता हूं। अरे मूर्ख सूर्य, बुध, शुक्र एक राशि में एक महीने, मंगल डेढ़ महीने, चंद्रमा दो महीने दो दिन तो बृहस्पति तेरह महीने रहते हैं लेकिन मैं एक राशि में ढ़ाई साल से लेकर सात साल तक रहता हूं। तुमने मेरा अपमान करके ठीक नहीं किया। सावधान रहना। विक्रमादित्य ने हाथ जोड़ लिये और जो भाग्य में होगा देखा जायेगा। फिर सभी देवता वहां से प्रस्थान कर गये। (Shanivar Vrat Katha Lyrics in Hindi)


अब वह दिन भी आ गया कि विक्रमादित्य पर शनि की साढ़े साती की दशा आई। अब शनिदेव घोड़ा व्यापारी के रूप में विक्रमादित्य की नगरी में जा पंहुचे। विक्रमादित्य ने घोड़ा पसंद किया और उस पर सवार हो गये। उनके सवार होते ही घोड़े को तो जैसे पंख लग गये, वह बहुत तेजी के साथ दौड़ता हुआ सुदूर वन में विक्रमादित्य को ले गया और वहां पटककर अदृश्य हो गया। अब विक्रमादित्य जंगल में मारे-मारे फिरने लगे लेकिन अपने राज्य लौटने का रास्ता न सूझा। भूख प्यास से भी हाल बेहाल हो गया। एक चरवाहा दिखाई दिया तो अपनी अंगूठी देकर उससे पानी पिया और पास के नगर जाने का रास्ता पूछा। चलते-चलते नगर में पंहुच गये और एक सेठ की दुकान पर सुस्ताने के लिये बैठ गये। उनके बैठते ही अचानक दुकान पर आने वाले ग्राहकों की संख्या बढ़ने लगी। सेठ ने सोचा बहुत भाग्यवान व्यक्ति है। राजा जाने लगा तो सेठ ने रोक लिया और उनसे भोजन करने का अनुरोध किया। सेठ राजा को भोजन करता हुआ छोड़कर थोड़ी देर के लिये बाहर चला गया। अब खाते खाते विक्रमादित्य क्या देखते हैं कि उनके सामने की खूंटी पर टंगे हार को खूंटी निगल रही है। सेठ जब तक वापस आया हार गायब। सेठ का संदेह सीधे विक्रमादित्य पर गया। उसने नगर के सैनिक बुलाकर विक्रमादित्य को उनके हवाले कर दिया। नगर के राजा ने विक्रमादित्य के हाथ पांव कटवाने के आदेश दे दिये। अब विक्रमादित्य की गत बहुत बुरी थी। लुंज-पुंज अवस्था में पड़ा कराहने लगा और उस मनहूस घड़ी को याद करने लगा जब वह घोड़े पर सवार हुआ। इतने में एक तेली उधर से गुजरा और उसे विक्रमादित्य पर रहम आ गया। उसने उसे अपने कोल्हू पर बैठा दिया और बैलों को हांकने के काम में लगा दिया। इससे विक्रमादित्य का भी समय कटने लगा और उसे भोजन भी मिलने लगा। धीरे-धीरे कष्ट पूर्ण दिन बीतने लगे और शनि की दशा की समाप्त होने को थी। वर्षा ऋतु आयी मेघ छाने लगे तो एक रात विक्रमादित्य मल्हार गाने लगे कि वहीं पास से राजकुमारी मनभावनी की सवारी निकल रही थी। जैसे ही राजकुमारी के कानों में विक्रमादित्य के स्वर पड़े वह मुग्ध हो गई। उसने पता किया तो पता चला कि कोई अपंग गा रहा है। राजकुमारी ने ठान लिया कि वह विक्रमादित्य से विवाह करेगी। उसने अपने पिता महाराज के समक्ष अपनी इच्छा को रखा। समझाने पर भी वह टस से मस नहीं हुई तो एक राजा को अपनी बेटी के सामने झुकना पड़ा और उसका विवाह विक्रमादित्य के साथ करवा दिया। रात को विक्रमादित्य को सपने में शनिदेव दिखाई दिये और कहा कि मेरी शक्ति से तुम अब परिचित हो गये होगे। विक्रमादित्य को सारी बातें याद हो आयी और शनिदेव से क्षमा मांगी और कहा हे शनिदेव मुझे आपकी शक्तियों का अच्छे से ज्ञान हो गया है आपसे विनती है कि जैसा मेरे साथ हुआ है ऐसा किसी और के साथ न हो। तब शनिदेव ने कहा कि ठीक है मैं तुम्हारी प्रार्थना स्वीकार करता हूं आज के बाद जो भी मेरे लिये व्रत रखेगा, मेरी पूजा करेगा, चींटियों को आटा खिलायेगा और मेरा ध्यान करते हुए इस कथा को पढ़ेगा या सुनेगा वह सभी कष्टों से मुक्त होगा और उसकी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी। इतना कहकर शनिदेव अदृश्य हो गये। जब राजा सुबह उठा तो उसने अपने हाथ-पैर भी सलामत पाये। उसे सलामत देखकर राजकुमारी के आश्चर्य का भी ठिकाना न रहा। तब विक्रमादित्य ने राजकुमारी को सारी बातें बताई। इसके बाद वे राजा मिलकर अपने राज्य लौटने की इच्छा जताई। सेठ को जब पता चला कि विक्रमादित्य राजा हैं तो वह आकर गिड़गिड़ाने लगा, माफी मांगने लगा विक्रमादित्य ने उसे माफ कर दिया क्योंकि वह जानते थे कि सब शनि महाराज का किया धरा था। अब सेठ ने फिर से उन्हें अपने यहां भोजन का निमंत्रण दिया। यहां भी सबके सामने चमत्कार हुआ जो हार खूंटी ने पहले निगल लिया था वह उस हार को वापस उगल रही थी। सबने शनिदेव की इस माया को देखकर नमन किया। नगर सेठ ने भी अपनी कन्या का विवाह राजा विक्रमादित्य के साथ कर दिया। अब विक्रमादित्य अपनी दोनों पत्नियों के साथ अपने राज्य में वापस लौटे तो लोगों ने उनका जोरदार स्वागत किया। अगले ही दिन विक्रमादित्य ने पूरे राज्य में घोषणा करवा दी कि शनिदेव सभी ग्रहों में सबसे शक्तिशाली हैं ग्रह हैं। अब से सारी प्रजा शनिवार को व्रत उपवास करेगी, शनिदेव का पूजन करेगी। (शनिवार हिंदी व्रत कथा)

बोलो शनिदेव भगवान की जय। 

Shanivar Vrat Katha (Time: 5:43 minutes)

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शनिवार व्रत कथा | Shaniwar Vrat Katha (Time: 7:42 minutes)

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